सारांश:ठाकुर का कुआँ

कहानी की पृष्ठभूमि गाँव की है, जहाँ ठाकुर का एक कुआँ है। गाँव में ठाकुर के कुएँ का पानी सबसे शुद्ध और साफ माना जाता है। हालांकि, गाँव के निम्न जाति के लोगों को इस कुएँ से पानी भरने का अधिकार नहीं है, क्योंकि उस समय समाज में ऊँच-नीच का भेदभाव बहुत गहरा था। ठाकुर का कुआँ केवल उच्च जातियों के लिए आरक्षित था, और निम्न जाति के लोग उस कुएँ से पानी नहीं भर सकते थे। वे लोग आमतौर पर गंदे और प्रदूषित जगहों से पानी लाने के लिए मजबूर होते थे। कहानी की मुख्य पात्र "गंगी" है, जो एक निम्न जाति की स्त्री है। उसके घर में पानी की भारी कमी होती है क्योंकि उसका पति, "जोखू", बीमार है और गंदा पानी पीने की वजह से उसकी हालत और बिगड़ती जा रही है। गंगी को चिंता होती है कि अगर उसका पति गंदा पानी पीता रहा तो उसकी जान को खतरा हो सकता है। गंगी चाहती है कि वह अपने पति के लिए ठाकुर के कुएँ से साफ पानी लाए, लेकिन उसे समाज के नियमों का डर है। गंगी रात के समय ठाकुर के कुएँ पर जाती है, ताकि वह चोरी से पानी भर सके। उसकी यह सोच होती है कि रात में किसी की नज़र नहीं पड़ेगी, और वह चुपचाप पानी ले आएगी। जब वह कुएँ पर पहुँचती है, तो डरते-डरते पानी भरने की कोशिश करती है। लेकिन जैसे ही वह पानी खींचने लगती है, ठाकुर का सेवक आकर उसे देख लेता है। डर के मारे गंगी अपनी बाल्टी छोड़कर भाग जाती है। गंगी का यह प्रयास असफल हो जाता है और वह फिर से गंदे तालाब से पानी लाने के लिए मजबूर होती है।